07 दिवसीय लोसर त्यौहार प्रारंभ

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल के हिमालय ग्राम मुक्ताकाश प्रदर्शनी परिसर में आज दिनांक 17 जनवरी, 2019 को संग्रहालय के निदेशक, प्रो. सरित कुमार चौधुरी, श्री दिलीप सिंह, संयुक्त निदेशक, मानव संग्रहालय एवं यूरोप के लातविया से आये टूरिज्म एंड कल्चरल हेरिटेज के प्रोफेसर्स के आतिथेय में मने चक्र के समक्ष श्री सोनम सुपारी के नेतृत्व में 09 पारंपरिक महिला कलाकारों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ 07 दिवसीय लोसर त्यौहार प्रारंभ हुआ। मने चक्र परिसर के गोम्पा में झंडा बदलकर पूजा – अर्चना करके खुमानी का प्रसाद वितरित किया गया और पारंपरिक महिला कलाकारों द्वारा पारम्परिक नृत्य की प्रस्तुति दी गई।

इस अवसर पर लाद्दख से आये श्री सोनम सुपारी ने लोसर त्यौहार के बारे में बताया कि लोसर महोत्सव एक नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। लोसर को मनाने की परंपरा 17 वीं शताब्दी में राजा, जमैयांग नामग्याल ने शुरू की थी। तब से, लद्दाख में नव वर्ष को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। लोसर के पहले दिन लोग अपने घर एवं लगे बगीचों की साफ सफाई करके घर में मिलने आने वाले अतिथियों एवं रिश्तेदारों के स्वागत स्वरुप उपहार देने के लिए खाटक (सफ़ेद रंग के मलमल कपड़े से बना दुपट्टा, जिसे गले में माला जैसे पहनाया जाता है) ला कर रखते है एवं आवश्यकतानुसार अनाज, भेड़, बकरी एवं खाद्य सामग्री एकत्रित करते हैं। इसके पश्चात् घरों को, मंदिरों को दीपक की रोशनी से रोशन करते हैं। तत्पश्चत अपने रसोई घर की दीवारों और दरवाजों पर ईबेक्स (पहाड़ों की बड़े-बड़े मुड़े हुए सींगों वाली जंगली बकरी) की छवियों को आटे से बनाते हैं यह उर्वरता का प्रतीक है। इसे सौभाग्य स्वरुप किचन की अलमारियों पर रखना शुभ माना जाता है।

इस दिन लोग सुख एवं समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं और परिवार में अपने रिश्तेदारों के साथ-साथ अपने बुजुर्गों को शुभकामनाएं देते हैं। छोटे सदस्य मिलने और अपने रिश्तेदारों का स्वागत करने के लिए बाहर जाते हैं, जबकि बड़े सदस्य अपने छोटे रिश्तेदारों का स्वागत करने के लिए घर लौटते हैं।

Updated date: 18-01-2019 09:17:00