समुदायों के लिए नए भविष्य की छवि बनाने में संग्रहालय सक्षम है – प्रो. बासा
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय द्वारा संस्कृति के लिए टैगोर राष्ट्रीय फैलोशिप के तहत आज फेसबुक के माध्यम से संग्रहालय की वार्षिक व्याख्यान के अंतर्गत आज प्रो. के.के. बासा, टैगोर नेशनल फैलो एवं पूर्व निदेशक, इंगारामासं. द्वारा वेबीनार के रूप में “एंथ्रोपोलॉजी एंड म्यूजियम्स इन इंडिया: ट्रेंड्स एंड ट्रेजैक्ट्रीज” विषय पर सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव व्याख्यान दिया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में संग्रहालय के संयुक्त निदेशक, श्री दिलीप सिंह ने वक्ता प्रो. बासा का परिचय दिया।
प्रो. बासा ने ऑनलाइन वाया फेसबुक वाच लाइव में संबोधित करते हुए अपने व्याख्यान को खंडों में विभाजित कर पहले खंड में उन्होंने 1784 से 1947 तक औपनिवेशिक काल के दौरान मानवविज्ञान और संग्रहालयों को एक विशिष्ट विषय के रूप में उभरते देखा। उस समय अंग्रेजों को प्रभावी प्रशासन चालने के लिए देशी संस्कृतियों को समझने हेतु मानव विज्ञान विषय की शुरुआत हुई एवं विभिन्न देशी समुदायों के विभिन्न पक्षों के भौतिक संस्कृतियों के प्रादर्श को एकत्रित कर स्टोर को संग्रहालय का रूप दिया गया। वर्ष 1784 में कोलकाता में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल की स्थापना ने भारत में इस तरह के अध्ययन की नींव रखी और 1814 में स्थापित भारतीय संग्रहालय तथा 1851 में मद्रास संग्रहालय स्थापित किया गया था। औपनिवेशिक काल के दौरान स्थानीय समुदायों और उनकी भौतिक संस्कृति को सांस्कृतिक रूप से 'सभ्य' यूरोपीय लोगों के रूप में प्रदर्शित करके, भारत में ब्रिटिश शासन को वैधता प्रदान की। औपनिवेशिक काल में भारत के ग्रामीण लोगों द्वारा कोलकाता की तीर्थ यात्रा के रूप में संग्रहालय का दौरा किया गया था। वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न (1899-1905) ने भी भारतीय संग्रहालय में कई प्रदर्शो के संग्रहण किया।
दुसरे खंड में, 1974 से आज तक भारत में मानव विज्ञान और संग्रहालय पर 02 उप शीर्षकों के तहत चर्चा की। (1) आईजीआरएमएस, भोपाल राष्ट्रीय स्तर पर, (2) मानवविज्ञान के साथ राज्य संग्रहालय, (3) राज्य जनजातीय अनुसंधान संस्थानों में आदिवासी संग्रहालय, और (4) विभिन्न विश्वविद्यालयों में मानव विज्ञान संग्रहालय। हाल ही में, भारत में मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से जुड़े कई संग्रहालयों विभिन्न चुनौतियों के साथ सामने आए है। ऐसे संग्रहालय व्यक्तियों, समुदायों और नागरिक समाजों द्वारा स्थापित किए गए हैंजैसे रिमेम्बर भोपाल म्यूजियम।
तीसरे खंड में उन्होंने कहा कि संग्रहालय कोविड के बारे में जागरूकता पैदा करने और अफवाह की घटनाओं को रोकन के लिए एक अच्छा मंच हो सकता है। महामारी खत्म होने के बाद, कोविड-19 के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया, कोविड से निपटने के प्रयासों, सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए लोगों द्वारा विकसित की गई अनूठी विधियाँ एवं चहेरों के भाव, बेरोजगारी, घरेलू हिंसा, प्रवासन श्रम आदि एवं इस अवधि में गंभीर और विनम्र दोनों तरह के साहित्य की रचना का समावेश हो के ऊपर मानव संग्रहालय को एक प्रदर्शनी, गैलरी या संग्रहालय बनाना चाहिए।
प्रो. बासा ने जेन्स और ग्राटन (2019) के वत्तव्य को उल्लेखित करते हुए कहा कि "संग्रहालयों का उद्देश्य अपने और अपने समुदायों के लिए एक नए भविष्य का आविष्कार करने की स्थिति और वांछनीय भविष्य की एक छवि बनाने में मदद करना है ना की वैश्विक समस्याओं को हल करना है – यह एक पहला कदम होगा"।
कार्यक्रम के अंत में फेसबुक के माध्यम से जुड़े लोगो के प्रश्नों के उत्तर दिए गए एवं उन सभी को धन्यवाद दिया और लोगो ने इस कार्यक्रम को देखा इसके लिए उन्होंने आभार व्यक्त किया।
