भारत-मातृभाषा के खिलते हुए फूल का गुलदस्ता है – अनुश्री
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में आज राजभाषा अनुभाग द्वारा वित्तीय वर्ष के अंतिम तिमाही में अयोजित राष्ट्रीय हिन्दी कार्यशाला सह संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वागत भाषण देते हुए संग्रहालय के संयुक्त निदेशक, श्री दिलीप सिंह, आई.टी.एस. ने कहा कि मातृभाषा सोचने की भाषा है। यह देश की पहचान होती है हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाने में हमें संयुक्त राष्ट्र संघ में पहल करनी होगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संग्रहालय के निदेशक, प्रो. सरित कुमार चौधुरी ने कहा कि मातृभाषा हमें देश प्रेम की भावना को उत्प्रेरित कर राष्ट्रीयता से जोड़ती है। वक्ता का परिचय देते हुए संग्रहालय के राजभाषा अधिकारी, श्री सुधीर श्रीवास्तव ने कहा कि सुश्री अनुपमा श्रीवास्तव एक जानी-मानी, लेखिका, एंकर, गायक, कवयित्री एवं समाज सेविका है। पेशे से वकील एवं लेखिका सुश्री अनुपमा का हिंदी साहित्यमें उनका योगदान अतुलनीय है।
इस कार्यशाला सह संगोष्ठी में सुप्रसिद्ध साहित्यकार, सुश्री अनुपमा श्रीवास्तव “अनुश्री” (अध्यक्ष, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा चैप्टर, भोपाल) ने ‘‘मातृभाषा संस्कृति की संवाहक है” विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि ध्वनी उर्जा से शब्द रूप में ग्रहण किया गया और बनी शब्द ब्रह्म, मनुष्यता को उच्चता तक पहुंचाने वाली अभिव्यक्ति और विकास की माध्यम बनी भाषा। मातृभाषा, यह माँ की लोरी के समान है। किसी भी क्षेत्र विशेष की मातृभाषा उस क्षेत्र के सामाजिक संस्कृति परिवेश की पहचान होती है इसी कारण मातृभाषा संस्कारित जीवन जीने की प्रेरणा भी देती है। साथ ही भावनाओं का आदान-प्रदान मातृभाषा में सरल तरिके से होता है। समाज की भाषा उस समाज की मान्यताओं रीति-रिवाजों से जुड़ी होती है। ये उस समाज को विरासत होती हैं जिसका संरक्षण मातृभाषा से संभव है। यह आत्मा की आवाज है जो माँ की अंचल में पल्लवित हुई भाषा बालक के मानसिक विकास को शब्द व पहला सम्प्रेषण देती है।
इस अवसर पर सुश्री अनुपमा श्रीवास्तव को संग्रहालय का प्रतिक चिन्ह भेट कर सम्मानित किया गया तथा सुश्री श्रीवास्तव द्वारा उनकी रचनाओं की प्रति संग्रहालय के ग्रंथालय हेतु निदेशक महोदय को भेंट की। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती सीमा खितौलिया, हिदीं अनुवादक, द्वारा दिया गया।