मिशनः

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय सहस्रों वर्षों में विकसित बहुमूल्य सांस्कृतिक प्रतिमानों की वैकल्पिक वैद्यता को समारोहित करने हेतु भारत में एक अंतर्क्रियात्मक संग्रहालय आंदोलन का प्रणेता है।यह संस्थान राष्ट्रीय एकता        हेतु कार्यरत है तथा विलुप्त प्राय परन्तु बहुमूल्य सांस्कृतिक परम्पराओं के संरक्षण और पुनर्जीवीकरण हेतु शोध और प्रशिक्षण के माध्यम से अन्य संस्थानों से संबंधो को बढावा देने, जैविक उद्विकास तथा विभिन्नता और एकता को    प्रदर्शनियों के माध्यम से दर्शाने हेतु कार्यरत है।इं.गां.रा.मा.सं. अपनी प्रदर्शनियों और साल्वेज गतिविधियों के माध्यम से हजारों वर्षों से पोषित देशज ज्ञान तथा मूल्यों, भारत की पारंपरिक जीवन शैली की सुन्दरता को प्रदर्शित करता और पारिस्थितिकी, पर्यावरण, स्थानीय मूल्यों, प्रथाओं इत्यादि के अभूतपूर्व विनाश के प्रति सचेत करता है। संग्रहालय की शैक्षणिक प्रक्रिया में एक बदलाव आया है और इं.गां.रा.मा.सं. इस प्रक्रिया में स्वयं हेतु एक भूमिका सुनिश्चित करताहै।

 

उदाहरण के लिये संग्रहालय अधिकारियों के अधिकारिक प्रवक्ता/जनता को अनौपचारिक शिक्षा के स्रोत के रूप में क्यूरेटर के स्थान पर लोक  तांत्रिक प्रक्रिया को अपनाते हुए समुदायों को ज्ञान का महत्वपूर्ण स्रोत मानता है तथा उन्हें संग्रहालय अधिकारियों के साथ शामिल कर संग्रहालय अधिकारी क्यूरेटर इसके प्रसारण हेतु मध्यस्थ कार्य कर रहे हैं।सार रूप में हमारे संग्रहालय की गतिविधियाँ इस तर्क की विनम्र पुष्टि करती हैं।

इस प्रक्रिया के एक और निष्कर्ष के रूपमें यह तर्क भी दिया जा सकता है कि संस्कृति कोई काल्पनिक और अपरिवर्तनशील तत्व नहींबल्कि प्रक्रिया के साथ-साथ बदलाव की खोजकी संवाहक भी है।यह संस्कृति की अवधारणा को स्थायी विकास के सहायक रूप में आगे बढ़ाती है ये कडि़याँ आधारभूत अथवा वैकल्पिक विकास को सुनिश्चित करती हैं।

 

समकालीन शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देष्य एक सम्मिलित समाज का निर्माण करना है।इस प्रक्रिया में संग्रहालय की भूमिका अपने प्रदर्शन को भिन्न  क्षमतावान लोगों की पहुँच तक सुगम बनाना ही नही बल्कि उनके लिये विशेष कार्यक्रम और गतिविधियों का आयोजन करने के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

 

हाल ही में संग्रहालय शिक्षा का मुख्य पक्ष पर्यावरण शिक्षा से जुड़ गया है।ग्रीन हाउस प्रभाव, जैव-विविधता के संरक्षण की पारंपरिक तकनीकें, जल प्रबंधन तथा अन्य संरक्षण तकनीकें आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें हम इन समुदायों से सीख सकते हैं और संग्रहालय का एक मंच की तरह उपयोग करते हुये इन्हें प्रचारित कर सकते हैं।

 

सामान्यतः प्रदर्शनियां दर्शकों को यर्थाथ बोध या उन्हें हकीकत से रूबरु कराने के लिये बनती हैं लेकिन कुछ प्रदर्शन सावधानी पूर्वक दर्शकों में रोमांच और विस्मय उत्पन्न करने के उद्देश्य से भी होने चाहिए। उदाहरण के लिये आगामी दो दशकों में गुड़गाँव में जल का स्वरूप क्या होगा?

 

सांस्कृतिक विविधता एवं राष्ट्रीय एकता को समारोहित करना संग्रहालय शिक्षा का महत्वपूर्ण पक्ष है लेकिन उत्तर औपनिवेशिक परिस्थिति में सांस्कृतिक विविधताओं का अलग-अलग तरीके से प्रदर्शन एक चुनौती है। कहा जा सकताहै कि यह राष्ट्रीय एकता के विरूद्ध हो सकता है, लेकिन मेरे लिये एकता के नाम पर बहुमाध्यमों की समरूपता न सिर्फ संग्रहालय व्यवसाय का बौद्धिक बांध्यकरण बल्कि इन बहुभाषी वैविध्यपूर्ण कल्पनाओं को साकाररूप न देकर राष्ट्रीय एकता के  विरूद्ध कार्य करना है।क्या आज के संग्रहालयकर्मी विरोधाभासी कल्पनाओं के प्रदर्शन की चुनौती से उबर सकते हैं? केवल भावी पीढ़ी ही हमारी इस सफ़लता का आंकलन कर सकती है।

Updated date: 29-12-2015 03:35:30