वस्त्र, पहनावा एवं पोशाक

मानव को प्राचीन समय से ही कपड़ो की आवश्यकता सर्दी से सुरक्षा हेतु पहनने या शरीर को ढकने के लिए पड़ी| वस्त्र उद्भव से पहले मानव इस हेतु जानवरों की खाल, पत्तो एवं छालो आदि का प्रयोग करता था जिनका स्थान बाद में तंतुओ से बने वस्त्रों ने ले लिया| क्षेत्र के मौसम एवं भोगोलिक स्थिति अनुसार भारत के लोग देश के विभिन्न भागों में अलग अलग प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते हैं | कई बार मनुष्य अवसर [विवाह.त्यौहार आदि ), उपलब्धता,  स्थान एवं प्रयोग के समय अनुसार पोशाक परिवर्तन करता हैं | पहनावे के अतिरिक्त विभिन्न उद्देश्यों पर उपयोग हेतु भिन्न प्रकार के वस्त्र हैं | इनके अनुष्ठानो अथवा सामाजिक महत्व के कारण  इन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता हैं | इं.गा.रा.मा.सं. द्वारा भारत के विभिन्न क्षेत्रो एवं समुदायों से अलग अलग आयु एवं लिंग अनुसार पोशाको के विभिन्न किस्मो का संग्रह किया गया हैं | पोशाको के अतिरिक्त कड़ाई युक्त, रंगाई युक्त, छपाई युक्त, हाथ से बुने एवं फेब्रिक वस्त्र जैसे कंथा, कलमकारी, पिचावेस, अलिजेरिन, फुलकार, चिकनकारी आदि का भी संग्रह किया गया हैं.|

Updated date: 16-08-2016 02:19:58