प्राचीन काल से ही मानव ने अपने जीवन में संगीत को अपनाया हैं | चाहें कंठ संगीत हो अथवा वाद्य. यह उनके जीवन का एक अंग तथा बाद में संस्कृति बन गया| संगीत प्रस्तुतियां चाहें व्यक्तिगत हो अथवा समूह में हो प्रत्येक समाज का आवश्यक घटक हैं| पारंपरिक रूप में संगीत प्रस्तुतियों का अर्थ केवल मनोरंजन ही नहीं हैं अपितु यह किसी संस्कृति की प्रस्तुति एवं संचार के उद्देश्य को भी बयां करती हैं| कुछ जनजातीय एवं लोक समाजो ने उनके संगीत एवं नृत्य के आधार पर ही विशेष पहचान पायी हैं | इंगारामास में इस वर्ग अंतर्गत एक बड़ा संग्रह हैं | प्रकार, आकर, माप एवं उपयोग के आधार पर इन संगीत वाद्य यंत्रों को चार समूहों- परकसन, स्ट्रिंग, वाइंड एवं क्लेपर इंस्ट्रूमेंट में वर्गीकृत किया गया हैं| परकसन इंस्ट्रूमेंट में एकल एवं दोहरी झिल्ली वाले ढोल, ढपली जबकि स्ट्रिंग इंस्ट्रूमेंट में सारंगी, सितार और संगीतपूर्ण धनुष आदि शामिल हैं| वाइंड इंस्ट्रूमेंट में बांसुरी, सीटी, धोंकनी एवं बिगुल महत्वपूर्ण हैं| क्लेप्पर ग्रुप में मंजीरे, घंटे एवं घंटियाँ महत्वपूर्ण हैं |
