दो जुड़े तत्वों का उपयोग किसी प्रादर्श के ताना बाना बुनने में किया जाना टोकरी कला है | टोकरी किसी अन्य प्रकार की सामग्रियों को जोड़ कर बनाये गए प्रादर्श से भिन्न होती है | कुंडलित टोकरी, गुंथी टोकरी (हस्त निर्मित) एवं जुड़वाँ टोकरियों के तीन प्रमुख रूप हैं\ इं.गा.रा.मा.सं. द्वारा खासी, भील, वारली, अगरिया, तोडा, बोडो, ओराओ, अभूज मारिया, मुरिया, कोटा, बैगा, राठवा, जनजातियों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों हेतु प्रयोग की जाने वाली टोकरियों में ढक्कन दार टोकरी, हत्थे वाली टोकरी, मछलीनुमा बास्केट, उथली टोकरी एवं बांस आदि टोकरियाँ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, मेघालय, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, गुजरात, केरल, बिहार से संग्रहित की गयी हैं|
